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भारतीय मूल्यों के संवाहक हैं महर्षि वाल्मीकि : ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह ‘रवि’

ByNamaste News Network

Oct 17, 2024
महर्षि वाल्मीकि
ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह ‘रवि’

महर्षि वाल्मीकि का जन्म शरद पूर्णिमा को हुआ। वे ऋग्वेद के आठवें मंडल में ऋषि रूप में प्रतिष्ठित हैं । देश के विभिन्न स्थानों पर उनके मंदिर बने हैं, मूर्तियाँ स्थापित हैं। उनके जन्म और महर्षि बनने की कथाएँ भी अलग-अलग मतों से भरी हैं। उनकी व्यापकता किसी विवाद का नहीं बल्कि स्तुति का विषय है। समय और विपरीत सामाजिक परिस्थितियों के चलते भारत में जो लगभग बारह सौ वर्ष का अंधकार रहा उसमें कुछ प्रतीक उभरे, कथाओं में कुछ विसंगतियां भी जुड़ी। इस कारण हमारी संस्कृति के अनेक प्रतीकों व व्यक्तित्वों को विवादित बना दिया गया । बावजूद इसके महर्षि वाल्मीकि का व्यक्तित्व और कृतित्व आज भी समाज को प्रेरणा दे रहा है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, विहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात , पंजाब,छत्तीसगढ़, केरल , कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों में ही नहीं नेपाल में भी महर्षि वाल्मीकि के अनेक मंदिर हैं।

सर्व समाज के  मार्गदर्शक हैं महर्षि वाल्मीकि

जिस दौर में वाल्मीकि हुए उस दौर में जाति का आधार कर्म हुआ करता था ऐसे में महर्षि वाल्मीकि की जाति ठीक-ठीक बताना मुश्किल है । यह उनकी व्यापकता है कि सब उन्हें अपना मानते हैं। ब्राह्मण उन्हें ऋषि पुत्र मानते हैं तो वनवासी भील वर्ग से । पंजाब में वाल्मीकि को क्षत्रिय माना जाता है तो मालवा और राजस्थान में दलित। तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में अनुसूचित जाति व गुजरात में उन्हें निषाद माना जाता है। महर्षि वाल्मीकि किस समाज या समूह से संबंधित हैं, इस पर भले मतभेद हों पर यह सर्व स्वीकार्य है कि वे संस्कृत के आदि कवि हैं, उन्होंने अपने पुरुषार्थ, परिश्रम या तप से अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया। सर्व समाज के मार्गदर्शक और पूज्य वाल्मीकि जी भारत में सामाजिक एकत्व और समरसता के प्रतीक हैं। उन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से संपूर्ण समाज और भूभाग को एक सूत्र में पिरोया।
वाल्मीकि कृत रामायण की कथा मानव सभ्यता,समाज और संस्कृतियों के द्वंद के साथ साथ नैतिक – अनैतिक व सात्विक – असात्विक मानव प्रवृत्तियों के द्वंद का आख्यान भी है। वाल्मीकि की इस विशिष्ट रचना का मनौवैज्ञानिक, आध्यात्मिक व पुरातात्त्विक विवेचन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने रामायण में एक उदात्त चरित्र का सृजन करके संसार के समक्ष आदर्श जीवन व्यतीत करने का एक मार्ग प्रस्तुत किया है। भारतीय जीवन मूल्यों के संवर्धक महर्षि वाल्मीकि को उनकी जयंती (17 अक्टूबर 2024) पर स्मरण करना हम सबका दायित्व है। उन्हें शत शत नमन।

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